Wel Come To तिलवाड़ा मेला और राजस्थान के प्रषिद मेले व पशु मेले की जानकारी
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यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र बुदी ग्यारस से चैत्र सुदी ग्यारस तक बाड़मेर जिले के पचपदरा तहसील के के तिलवाड़ा गांव में लूनी नदी पर लगता है इस पशु मेले में सांचोर की नस्ल के बैलों के अलावा बड़ी संख्या में मालानी नस्ल के घोड़े और ऊंठ की भी बिक्री होती है।तिलवाड़ा का उत्खनन कार्य 1967-68 ई. में एन. मिश्रा पूना विजय कुमार राजस्थान राज्य पुरातत्त्व एवं संग्रहालय था एल.सी. लैसनिक (हिडलबर्ग विश्वविद्यालय) के नेतृत्व में किया गया। इस स्थल से प्राप्त सांस्कृतिक जमाव 60 सेमी का है। इसकी सतह पर लघुपाषाण उपकरण तथा मृद्पात्रों के ठीकरे मिलते हैं। उत्खनन में यहाँ से फर्श के चारों ओर गोल पत्थर जमाये हुए मिले हैं। तिलवाड़ा से गोल झोंपड़ियों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यहाँ से एक 70 सेमी गहरा एवं 20 सेमी मुखवाला गड्डा मिला है जो उत्तरोत्तर नीचे की ओर संकरा होता गया है। इस गड्डे में कुछ मृद्पात्रों के टुकड़े व हड्डियाँ तथा राख मिली है। इस स्थल से क्वार्टस क्वार्ट् जाइट, चर्ट एवं कार्नेलियन से बनी हुई क्रोड, ब्लैड ट्रैपीज, प्वाइंट तथा ट्रायंगल इत्यादि उपकरण उपलब्ध हैं। यहाँ से प्राप्त मृद्पात्रों के टुकड़े निःसन्देह चाक निर्मित हैं। यहाँ से कुचली हुई हड्डियाँ मिली हैं। वे निश्चित रूप से बड़े जानवरों की हैं। जिसमें वनमहिष, वृषभ, सूअर आदि मुख्य हैं। पक्षियों का मांस इस काल का मानव बहुत अधिक चाव से खाता था। छोटे-छोटे तीरनुमा उपकरणों की उपस्थिति इसका स्पष्ट संकेत देती है। उत्तरपाषाण काल राजस्थान में लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व प्रारम्भ होता है। तिलवाड़ा से उत्तरपाषाणयुगीन उपकरण मिले हैं। इस युग में उपकरणों का आकार छोटा और कौशल से भरपूर हो गया था। लकड़ी तथा हड्डी की लम्बी नली में गोंद से चिपकाकर इन उपकरणों का प्रयोग प्रारम्भ हो गया था। राजस्थान के बागोर के अतिरिक्त तिलवाड़ा ही ऐसा क्षेत्र है, जहाँ से इतने वृहद स्तर पर उत्तरपाषाणकालीन पुरासामग्री प्राप्त हुई है।
प्रमुख पशु मेले
श्री रामदेव पशु मेला-नागौर[संपादित करें]
राज्य में आयोजित एक पशु मेले का दृश्य इस मेले के बारे में प्रारंभ में प्रचलित मान्यता है [1] कि मानसर गांव के समुद्र भू-भाग पर रामदेव जी की मूर्ति स्वतः ही अद्भुत हुई। श्रद्धालुओं ने यहां एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया है और यहां मेले में आने वाला पशुपालक इस मंदिर में जाकर अपने पशुओं के स्वास्थ्य की मनौती मांग ही खरीद [2] फरोख्त किया करते हैं। आजादी के बाद से मेले की लोकप्रियता को देखकर राज्य के पशु पालन विभाग [3] ने इसे राज्यस्तरीय पशु मेलों में शामिल किया तथा फरवरी १९५८ से पशुपालन विभाग इस मेले का संचालन कर रहा है। यह पशु मेला प्रतिवर्ष नागौर शहर से ५ किलोमीटर दूर मानसर गांव में माघ शुक्ल १ से माघ शुक्ल १५ तक लगता है। मारवाड़ के लोकप्रिय नरेश स्वर्गीय श्री उम्मेद सिंह जी को इस मेले का प्रणेता माना जाता है। इस मेले में नागौरी नस्ल के बैलों की बड़ी मात्रा में बिक्री होती है। [4][5][6]
श्री मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा-बाड़मेर[संपादित करें] यह पशु मेला वीर योद्धा रावल मल्लिनाथ की स्मृति में आयोजित होता है। विक्रम संवत १४३१ में मलीनाथ के गद्दी पर आसीन होने के शुभ अवसर पर एक विशाल समारोह का आयोजन किया [7] गया था जिसमें दूर-दूर से हजारों लोग शामिल हुए। आयोजन की समाप्ति पर लौटने के पहले इन लोगों ने अपनी सवारी के लिए ऊंट, घोड़ा और रथों के सुडौल बैलों का आपस में आदान-प्रदान किया तथा यहीं से इस मेले का उद्भव हुआ। इस मेले का संचालन पशुपालन विभाग ने सन १९५८ में संभाला। यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र बुदी ग्यारस से चैत्र सुदी ग्यारस तक बाड़मेर जिले के पचपदरा तहसील के के तिलवाड़ा गांव में लूनी नदी पर लगता है इस पशु मेले में सांचोर की नस्ल के बैलों के अलावा बड़ी संख्या में मालानी नस्ल के घोड़े और ऊंठ की भी बिक्री होती है।[8]
श्री बलदेव पशु मेला, मेड़ता सिटी-नागौर[संपादित करें]
यह पशु मेला मेड़ता सिटी [9] में चैत्र सुदी १ से चैत्र सुदी १५ तक आयोजित होता है। [10] इस मेले में अधिकांशतः नागौरी बैलों की बिक्री होती है। [11] यह पशु मेला प्रसिद्ध किसान नेता श्री बलदेव राम जी मिर्धा की स्मृति में अप्रैल १९४७ से राज्य का पशुपालन विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है।[12]
श्री वीर तेजाजी पशु मेला परबतसर नागौर[संपादित करें] राजस्थान में यह पशु मेला लोक देवता वीर तेजाजी की याद में भाद्र शुक्ल दशमी (तेजा दशमी) को भरता है। पशुपालन विभाग ने इस मेले की बागडोर [13] सन १९४७ में अपने हाथ में ली थी। यह पशु मेला आमदनी के लिए प्रदेश का सबसे बड़ा मेला है। विक्रम संवत १७९१ में जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह ने यहां तेजाजी का देवल बनाकर एवं उनकी मूर्ति स्थापित कर इस पशु मेले की शुरुआत की थी। यह मेला नागौरी बैलों एवं[14] बीकानेरी ऊंटों के क्रय -विक्रय के लिए प्रसिद्ध है।
महाशिवरात्रि पशु मेला करौली[संपादित करें]
करौली जिले में भरने वाला यह पशु मेला राज्य स्तरीय पशु मेलों में से एक है। इस पशु मेले का आयोजन प्रतिवर्ष [15] फाल्गुन कृष्णा में किया जाता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर आयोजित होने से इस पशु मेले का नाम शिवरात्रि पशु मेला पड़ गया है। इस मेले के आयोजन का प्रारंभ रियासत काल में हुआ था। मेले में हरियाणवी नस्ल के पशुओं की बिक्री बहुत होती है। राजस्थान के [16] अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के व्यापारी भी इस मेले में आते हैं। पशु मेला समाप्त हो जाने के करीब १ सप्ताह बाद इसी स्थल पर माल मेला भरता है जिसमें करौली कस्बे के आस-पास के व्यापारी वर्ग अपनी दुकानें लगाते हैं और ग्राम ग्रामीण क्षेत्र के लोगों द्वारा इस मेले में आवश्यक वस्तुओं को खरीदा जाता है और चुना जाता है कि इस मेले में रियासत के समय जवाहरात की दुकानें भी लगाई जाती थीं।[17]
गोमती सागर पशु मेला-झालावाड़[संपादित करें] झालावाड़ जिले के [18] झालरापाटन कस्बे में यह पशु मेला प्रतिवर्ष वैशाख सुदी तेरस से जेड बुद्धि पंचम तल गोमती सागर की [19] पवित्रता पर बढ़ता है यह पशु मेला हाड़ौती अंचल का सबसे बड़ा एवं प्रसिद्ध मेला है पशुपालन विभाग मई १९५९ से इस पशु मेले को आयोजित कर रहा है।[20]
श्री गोगामेड़ी पशु मेला-हनुमानगढ़[संपादित करें] गोगामेड़ी राजस्थान के पांच[21] पीरों में से एक वीर तथा लोक देवता गोगा जी का समाधि स्थल है यह वर्तमान में हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में है यहां [22] प्रतिवर्ष श्रावण सुदी पूनम से भादवा सुदी पूनम तक पशु मेले का आयोजन होता है इस मेले के संचालन का काम पशुपालन विभाग द्वारा अगस्त १९५९ से हो रहा है।[23]
श्री जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेला-भरतपुर[संपादित करें] भरतपुर रियासत के [24] स्वर्गीय महाराजा जसवंत सिंह की याद में इस प्रदर्शनी तथा पशु मेले का आयोजन होता है प्रतिवर्ष यह पशु मेला आसोज [25] सुदी पंचम से आसोज सुदी १४ तक लगता है इस मेले में हरियाणा नस्ल के बैलों का कई अभिक्रिया होता है अक्टूबर १९५८ से पशुपालन विभाग पशु मेले को आयोजित कर रहा है।[26]
श्री चंद्रभागा पशु मेला-झालावाड़[संपादित करें] झालावाड़ जिले के झालरापाटन कस्बे [27] में यह पशु मेला हर साल कार्तिक सुदी ग्यारस से मिगसर सुदी पंचम तक चलता है इस पशु मेले में मालवी नस्ल के बैलों की भारी तादाद में खरीद होती है पशुपालन विभाग द्वारा इस मेले का संचालन नवंबर १९५८ से हो रहा है। [28]
पुष्कर पशु मेला-अजमेर[संपादित करें] मुख्य लेख: पुष्कर मेला
पुष्कर मेला, 2006 अजमेर से ११ कि॰मी॰ दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है।[29] यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं।[30] हजारों हिन्दू लोग इस मेले में आते हैं। व अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं। भक्तगण एवं पर्यटक श्री रंग जी एवं अन्य मंदिरों के दर्शन कर आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।[31]
राज्य प्रशासन भी इस मेले को विशेष महत्त्व देता है। स्थानीय प्रशासन इस मेले की व्यवस्था करता है एवं कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयाजन करते हैं।[32]
इस समय यहां पर पशु-मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुओं से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम भी किए जाते हैं, जिसमें श्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को पुरस्कृत किया जाता है। इस पशु मेले का मुख्य आकर्षण होता है।[33]
भारत में किसी पौराणिक स्थल पर आम तौर पर जिस संख्या में पर्यटक आते हैं, पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है। इनमें बड़ी संख्या विदेशी सैलानियों की है, जिन्हें पुष्कर खास तौर पर पसंद है। हर साल कार्तिक महीने में लगने वाले पुष्कर ऊंट मेले ने तो इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी [34] बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं। मेला रेत के विशाल [35] मैदान लगाया जाता है। ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप विशाल पशु मेले का हो गया है। [36]
राजस्थान के प्रमुख मेले
1. बेणेश्वर धाम मेला (डूंगरपुर)
यह मेला सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर मेला भरता है। यह मेला माघ पूर्णिमा को भरता हैं। इस मेले को बागड़ का पुष्कर व आदिवासियों मेला भी कहते है। संत माव जी को बेणेश्वर धाम पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
2.घोटिया अम्बा मेला (बांसवाडा)
यह मेला चैत्र अमावस्या को भरता है। इस मेले को “भीलों का कुम्भ” कहते है।
3.भूरिया बाबा/ गोतमेश्वर मेला (अरणोद-प्रतापगढ़)
यह मेला वैशाख पूर्णिमा को भरता हैं। इस मेले को “मीणा जनजाति का कुम्भ” कहते है।
4.चैथ माता का मेला (चैथ का बरवाडा – सवाई माधोपुर)
यह मेला माध कृष्ण चतुर्थी को भरता है। इस मेले को “कंजर जनजाति का कुम्भ” कहते है।
5.गौर का मेला (सिरोही)
यह मेला वैशाख पूर्णिमा को भरता है। इस मेले को ‘ गरासिया जनजाति का कुम्भ’ कहते है।
6.सीताबाड़ी का मेला (केलवाड़ा – बांरा) यह मेला ज्येष्ठ अमावस्या को भरता है। इस मेले को “सहरिया जनजाति का कुम्भ” कहते है। हाडौती अंचल का सबसे बडा मेला है।
7.पुष्कर मेला (पुष्कर अजमेर) यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। मेरवाड़ा का सबसे बड़ा मेला है। इस मेले के साथ-2 पशु मेले का भी आयोजन होता है जिसे गिर नस्ल का व्यापार होता है। इस मेले को “तीर्थो का मामा” कहते है।
8.कपिल मुनि का मेला (कोलायत-बीकानेर) यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। मुख्य आकर्षण “कोलायत झील पर दीपदान” है। कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रणेता थे। जंगल प्रेदश का सबसे बड़ा मेला कहलाता है।
9.साहवा का मेला (चूरू) यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। सिंख धर्म का सबसे बड़ा मेला है।
10.चन्द्रभागा मेला (झालरापाटन -झालावाड़)
यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। चन्द्रभागा नदी पर बने शिवालय में पूजन होता हैं। इस मेले के साथ-साथ पशु मेला भी आयोजित होता है, जिसमें मुख्यतः मालवी नसल का व्यापार होता है।
11.भर्तहरी का मेला (अलवर)
यह मेला भाद्रशुक्ल अष्टमी को भरता हैं। इस मेले का आयोजन नाथ सम्प्रदाय के साधु भर्त्हरि की तपोभूमि पर होता हैं। भूर्त्हरि की तपोभूमि के कनफटे नाथों की तीर्थ स्थली कहते है। मत्स्य क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला है।
12.रामदेव मेला (रामदेवरा-जैसलमेर)
इस मेले का आयोजन रामदेवरा (रूणिचा) (पोकरण) में होता है। इस मेले में आकर्षण का प्रमुख केन्द्र तेरहताली नृत्य है जो कामड़ सम्प्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
13.बीजासणी माता का मेला (लालसोट-दौसा) यह मेला चैत्र पूर्णिमा को भरता है।
14.कजली तीज का मेला (बूंदी)
यह मेला भाद्र कृष्ण तृतीया को भरता है।
15.मंचकुण्ड तीर्थ मेला (धौलपुर)
यह मेला अश्विन शुक्ल पंचमी को भरता है। इस मेले को तीर्थो का भान्जा कहते है।
16.वीरपुरी का मेला (मण्डौर – जौधपुर)
यह मेला श्रावण कृष्ण पंचमी को भरता है। श्रावण कृष्ण पंचमी को नाग पंचमी भी कहते है।
17.लोटियों का मेला (मण्डौर -जोधपुर)
यह मेला श्रावण शुक्ल पंचमी को भरता है।
18.डोल मेला (बांरा)
यह मेला भाद्र शुक्ल एकादशी को भरता है। इस मेले को श्री जी का मेला भी कहते हैं ।
19.फूल डोल मेला (शाहपुरा- भीलवाडा)
यह मेला चैत्र कृष्ण एकम् से चैत्र कृष्ण पंचमी तक भरता है।
20.अन्नकूट मेला (नाथ द्वारा- राजसंमंद)
यह मेला कार्तिक शुक्ल एकम को भरता है। अन्नकूट मेला गोवर्धन मेले के नाम से भी जाना जाता है।
21.भोजनथाली परिक्रमा मेला (कामा-भरतपुर)
यह मेला भाद्र शुक्ल दूज को भरता है।
22.श्री महावीर जी का मेला (चान्दनपुर-करौली)
यह मेला चैत्र शुक्ल त्रयोदशी से वैशाख कृष्ण दूज तक भरता है। यह जैन धर्म का सबसे बड़ा मेला है। मेले के दौरान जिनेन्द्ररथ यात्रा आकर्षण का मुख्य केन्द्र होती है।
23.ऋषभदेव जी का मेला (धूलेव-उदयपुर)
मेला चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतलाष्टमी) को भरता है। जी को केसरिया जी, आदिनाथ जी, धूलेव जी, तथा काला जी आदि नामों से जाना जाता है।
24.चन्द्रप्रभू का मेला (तिजारा – अलवर)
यह मेला फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को भरता हैं यह भी जैन धर्म का मेला है।
25.बाड़ा पद्य्पुरा का मेला (जयपुर)
यह भी जैन धर्म का मेला है।
26.रंगीन फव्वारों का मेला (डींग-भरतपुर)
यह मेला फाल्गुन पूर्णिमा को भरता है।
27.डाडा पम्पा राम का मेला (विजयनगर-श्रीगंगानगर)
यह मेला फाल्गुन माह मे भरता है।
28.बुढ़ाजोहड़ का मेला (डाबला-रायसिंह नगर-श्री गंगानगर)
श्रावण अमावस्या को मुख्य मेला भरता है।
29.वृक्ष मेला (खेजड़ली- जोधपुर)
यह मेला भाद्र शुक्ल दशमी को भरता है। भारत का एकमात्र वृक्ष मेला है।
30.डिग्गी कल्याण जी का मेला (टोंक)
कल्याण जी विष्णु जी के अवतार माने जाते है। कल्याण जी का मेला श्रावण अमावस्या व वैशाख में भरता है।
31.गलता तीर्थ का मेला (जयपुर)
यह मेला मार्गशीर्ष एकम् (कृष्ण पक्ष) को भरता है। रामानुज सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गलता (जयपुर) में स्थित है।
32.माता कुण्डालिनी का मेला (चित्तौडगढ)
यह मेला चित्तौडगढ के राश्मि नामक स्थान पर भरता है। मातृकुण्डिया स्थान को राजस्थान का हरिद्वार कहते है।
33.गणगौर मेला (जयपुर)
यह मेला चैत्र शुक्ल तृतीयया को भरता है। जयपुर का गणगौर मेला प्रसिद्ध है। बिन ईसर की गवर, जैसलमेर की प्रसिद्ध है। जैसलमेर में गणगौर की सवारी चैत्र शुक्ल चतुर्थी को निकाली जाती है।
34.राणी सती का मेला (झुनझुनू)
यह मेला भाद्रपद अमावस्या का भरता था। इस मेले पर सती प्रथा निवारण अधिनियम -1987 के तहत् सन 1988 को रोक लगा दी गई।
35.त्रिनेत्र गणेश मेला (रणथम्भौर -सवाई माधोपुर)
यह मेला भाद्र शुक्ल चतुर्थी को भरता है।
36.चुन्धी तीर्थ का मेला (जैसलमेर)
श्री गणेश जी से संबंधित मेला है। “हेरम्भ गणपति मंदिर” बीकानेर में है। इस मंदिर में गणेश जी को शेर पर सवार दिखाया गया है।
37.मानगढ़ धान का मेला (बांसवाडा)
यह मेला आश्विन पूर्णिमा को भरता है। गोविंद गिरी की स्मृति मे भरता है।