The palaces in places like Jaipur, the lakes of Udaipur, and the famous forts in the deserts of Jodhpur, Jaisalmer and Bikaner are some of the favourites. Tourism counts for as much as eight percent of the state’s GDP (gross domestic product). Many palaces and forts that were falling apart due to neglect, have now been converted to luxurious heritage hotels that command huge prices and pull millions of people from around the globe. Attractive Rajasthan Tourism Packages also help boost tourism in the state.
Destinations in Rajasthan
- Umaid Bhawan Palace- It is the largest Royal Palace of Rajasthan, and also one of the largest private residence.
- Lake Palace-Now a luxury hotel, located in the Pichola Lake, Udaipur.
- Hawa Mahal-Known as the “Palace of Wind” or the “Palace of Breeze” due to the humongous nine hundred and fifty windows in the palace.
- Rambagh Palace-Formerly a Royal Palace, has now been converted into a Heritage Hotel,and is one of the best Heritage Hotels in the World.
- Devi Garh Palace-A palace, earlier, now converted into a Heritage Hotel. In 2006, The New York Times named it as a leading luxurious hotel in the South Asean Subcontinent.
Forts that you can’t miss once you are in Rajasthan
- Kumbhalgarh Fort
- Ranthambore Fort
- Gagron Fort
- Amber Fort
- Jaisalmer Fort
- Nahargarh Fort
- Bhatner fort
- Junagarh Fort
- Mehrangarh Fort
- Lohagarh Fort
- Taragarh Fort
- Jalore Fort
- Nagaur Fort
- Shergrah Fort
Fairs and Festivals in Rajasthan
- Camel Festival in Bikaner (January)
- Nagaur Fair in Nagaur (Jan-Feb.)
- Kite Festival (held on 14th Jan of every year)
- Desert Festival in Jaisalmer (Jan-Feb.)
- Baneshwar Fair in Baneshwar (Jan-Feb.)
- Gangaur Festival in Jaipur (March–April)
- Mewar Festival in Udaipur (March–April)
- Elephant Festival in Jaipur (March–April)
- Urs Ajmer Sharif in Ajmer (According to Lunar Calendar)
- Summer Festival in Mt.Abu (June)
- Teej Festival in Jaipur (July–August)
- KajliTeej in Bundi (July–August)
- Dussehra Festival in Kota (October)
- Marwar Festival in Jodhpur (October)
- Pushkar Fair in Ajmer (November)
Eight Places to include if you are planning for a full Rajasthan tour-
- Ajmer –Th popular shrine of the Sufi Saikhllnt Khwaja, Moinuddin Chishti and also the Digambar Jain Temple called Soniji Ki Nasiyan is located here. It’s a quiet and beautiful place that you must include in your list.
- Barmer – A perfect picture of a typical Rajasthani villages, complete and colourful, is something that you can best see in Barmer.
- Bhilwara – Known widely for its beautiful textile industry. Hamirgarh Eco-park and Harni Mahadev temple are also important tourist destinations, that crowds throng to.
- Bundi –It is popular for its forts, as well as the palaces and stepwell reservoirs known as ‘baoris’.
- Jaipur– Mostly known as the pink city of India and it is also the capital of Rajasthan. It is also famous for palaces and temples.
- Jaisalmer–It is famous for its golden fortress, that was depicted in the Bengali movie “Sonar Kella”, and its havelis, and it alsohas some of the oldest Jain Temples and libraries.
- Jhalawar district –The exquisite caves such as the Binnayaga Buddhist caves as well as the Hathiagor Buddhist Caves and Kolvi Caves, which are popular examples of medieval architecture of India,can be found in this area.
- Mount Abu–It is a well-knownhill station, and is famous for its eleventh century old, Dilwara Jain Temples as well as its natural beauty. Thehighest peak of Aravalli Range, in Rajasthan, Guru Shikhar is only 15 km and is an easy-visit from the main town.
रीति -रिवाज
- गर्भाधान
- पुंसवन- पुत्र प्राप्ति हेतू
- सिमन्तोउन्नयन- माता व गर्भरथ शिशु की अविकारी शक्तियों से रक्षा करने के लिए।
- जातकर्म
- नामकरण
- निष्कर्मण- शिशु को जन्म के बाद पहली बार घर से बाहर ले जाने के लिए।
- अन्नप्रसान्न- पहली बार अन्न खिलाने पर (बच्चे को)
- जडुला/ चुडाकर्म - 2 या 3 वर्ष बाद प्रथम बार केस उतारने पर
- कर्णभेदन
- विद्यारम्भ
- उपनयन संस्कार- गुरू के पास भेजा जाता है।
- वेदारम्भ - वेदों का अध्ययन शुरू करने पर
- गौदान- ब्रहा्रचार्य आश्रम में प्रवेश
- समावर्तन- शिक्षा समाप्ति पर
- विवाह- गृहस्थ आश्रम में प्रवेश
- अन्तिम संस्कार- अत्येष्टि
विवाह के संस्कार
- सगाई
- टीका
- लग्नपत्रिका
- गणेश पूजन/ हलदायत की पूजा
विवाह के तीन दिन, पांच दिन, सात दिन, नौ दिन, पूर्व लग्न पत्रिका पहुंचाने के बाद वर पक्ष एवं वधू पक्ष ही अपने- अपने घरों में गणेश पूजन कर वर और वधू घी पिलाते है। इसे बाण बैठाना कहते है।
घर की चार स्त्रियां (अचारियां) (जिसके माता-पिता जीवित हो वर व वधू को पीठी चढ़ाती है। बाद में एक चचांचली स्त्री जिसके माता-पिता एवं सास-ससुर जीवित हो) पीठी चढ़ाती है। बाद में स्त्रियां लगधण लेती है।
- बिन्दोंरी/ बन्दोली
- सामेला/ मधुपर्क
- ढुकाव
- तौरण मारना
- पहरावणी/ रंगबरी (दहेज)
- बरी पड़ला (वधू के लिए वर पक्ष द्वारा परिधान भेजना)
- मुकलावा/ गैना
- बढ़ार
- कांकण डोरडा/ कांकण बंधन- बन्दोली के दिन वर और वधू के दाहिने हाथ और पांव में कांकण डोरा बांधा जाता है।
- मांडा झाकणा
- कोथला (छुछक)
- जान चढ़ना/ निकासी
- सास द्वारा दही देना
- मंडप (चवंरी) छाना
- पाणिग्रहण/ हथलेवा जोड़ना
- जेवनवार - पहला जेतनवार पाणिग्रहण से पूर्व होता है, जिसे "कंवारी जान का जीमण" कहते है। दूसरे दिन का भोज " परणी जान का जीमण" कहलाता है। शाम का भोजन" "बडी जान का जमीण" कहलाता है। चैथा भोज मुकलानी कहलाता है।
- गृहप्रवेश/ नांगल - वर की बहन या बुआ (सवासणियां) कुछ दक्षिणा लेकर उन्हें घर में प्रवेश होने देती है। इसे "बारणा राकना " कहते है। वधू के साथ उसके पीहर से उसका छोटा भाई या कोई निकट संबंधी आता है। वह ओलन्दा या ओलन्दी कहलाती है।
- राति जगा
- रोड़ी पूजन
- बत्तीसी नूतना/भात नूतना
- मायरा/ भात भरना
मृत्यु से संबंधित संस्कार
- बैकुण्ठी- अर्थी
- बखेर- खील, पतासा, रूई, मूंगफली, रू. पैसे व अनाज आदि
- आधेठा- अर्थी का दिश परिवर्तन करना।
- अत्येष्टि
- लौपा/ लांपा- आग जो मृतक को जलाती है।
- मुखाग्नि देना
- कपाल क्रिया
- सांतरवाडा- अन्त्येष्टि के पश्चात् लोग नहा-धोकर मृतक व्यक्ति के यहां सांत्वना देने जाते है। यह रस्म 12 दिन तक चलती है।
- फूल चूनना- अन्त्येष्टि के तीन दिन बाद।
- मोसर/ ओसर/ नुक्ता- बारहवें दिन मृत्यु भोज की प्रथा है।
- पगड़ी
प्रमुख शब्दावली
1.हरावल
सेना की अग्रिम पंक्ति हरावल कहलाती है।
2.ताजीम
सामंत के राजदरबार में प्रवेश करने पर राजा के द्वारा खडे़ होकर उसका सम्मान करना।
3.मिसल
राज दरबार में सभी व्यक्तियों का पंक्तिबद्ध बैठना, मिसल है।
4. तलवार बंधाई
उत्तराधिकारी घोषित होने पर की जाने वाली रस्म है।
5. खालसा भूमि
सीधे राजा के नियंत्रण में होती थी।
6. जागीर भूमि
जागीरदार के नियंत्रण में होती थी।
7.लाटा
फसल कटाई के पश्चात् तोल कर लिया जाने वाला राजकीय शुल्क /कर है।
8.कुंडा
खड़ी फसल की अनुमानतः उपज के आधार पर लिया जाने वाला राजकीय शुल्क/कर है।
9.कामठा लाग
दुर्ग के निर्माण के समय जनता से लिया गया कर कामठा कहलाता है।
10. खिचड़ी लाग
युद्ध के समय सैनिकों के भोजन के लिए शासको द्वारा स्थानीयय जनता से वसूला गया कर खिचड़ी लाग कहलाता है।
11. कीणा।
गावों में सब्जी अथवा अन्य सामान खरीदने के लिए दिया जाने वाला अनाज कीणा कहलाता है।
12.प्रिंवीपर्स
श्शासकों को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता प्रिवीपर्स कहलाता है।
13.करब
सामन्तों को प्राप्त विशेष सम्मान जिसके अन्र्गत राजा जागीरदार के कन्धों पर हाथ रख कर अपनी छाती तक ले जाता था। जिसका अभिप्राय होता था कि आपका स्थान मेरे ह्रदय मे है।
14. बिगोड़ी
यह भूमि कर है जिसके अन्तर्गत नकद रकम वसूली जाती है।
15. सिगोटी
पशुओं के विक्रय पर लगने वाला कर था।
16. जाजम
भूमि विक्रय पर लगने वाला कर था।
17.जकात
सीमा शुल्क (बीकानेर क्षेत्र मे)
18.डाग
सीमा शुल्क था।
राजस्थान में प्रचलित प्रथाएं
1. कन्या वध प्रथा-
इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक हाडौती के पोलिटिकल एजेंट विल क्विंसन के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिक के समय 1833 ई. में कोटा में तथा 1834 ई. में बूंदी राज्य में लगाई गई।
2. दास प्रथा
युद्ध में हारे हुए व्यक्तियों को बंदी बनाकर अपने यहां दास के रूप में रखा जाता था, साथ ही दासों का क्रय-विक्रय भी किया जाता था।
राजपूतों में लड़की की शादी के अवसर पर गोला/गोली को दास-दासी के रूप में साथ भेजा जाता था।
इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक सन् 1832 ई. मंे हाडौती क्षेत्र में लगाई है।
3. मानव व्यापार प्रथा
कोटा राज्य के अन्तर्गत मानव क्रय-विक्रय पर राजकीय शुल्क वसुला जाता था, जिसे "चैगान" कहा जाता था।
इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक 1847 ई. में जयपुर रियासत में लगाई गई है।
4. विधवा विवाह प्रथा
ईश्वर चंद विद्या सागर के प्रयासों से 1856 ई. में लार्ड डलहौजी द्वारा विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारीत किया गया।
5. दहेज प्रथा
दहेज प्रथा निरोधक कानून 1961 ई. में पारीत हुआ।
6. बेगार प्रथा
जागीरदारों द्वारा किसी व्यक्ति से काम करवाने के बाद कोई मजदूरी न देने की प्रथा थी।
इस प्रथा पर सन् 1961 ई. में रोक लगाई गई।
7. बंधुआ मजदूर प्रथा/सागडी प्रथा/ हाली प्रथा
सेठ, साहुकार अथवा पूंजीपति वर्ग के द्वारा उधार दी गई धनराशि के बदले कर्जदार व्यक्ति या उसके परिवार के किसी सदस्य को अपने यहां नौकर के रूप में रखता था।